December 6th, 2018 | POLITICS
बहराइच से बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले हमेशा अपने बयानों को लेकर सुर्ख़ियों में रहती है। आरक्षण और संविधान को लेकर उन्होंने गुरुवार को बीजेपी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उनका आरोप है कि जिस लड़ाई को लेकर पार्टी चली थी उसी राह से वह भटक गई है. लिहाजा अब पार्टी में रहन संभव नहीं है.
सावित्री बाई फुले का सियासी सफर इतना आसान नहीं रहा। वे बीजेपी की दलित महिला चेहरा थीं. उनका जाना बीजेपी को एक झटका है. बता दें सावित्री बाई फुले ने 2012 में बीजेपी के टिकट पर बलहा (सुरक्षित) सीट से चुनाव जीता था। जिसके बाद उन्हें 2014 लोकसभा का टिकट मिला जहां से जीतकर वे संसद पहुंची. इससे पहले 1996 में वह जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीतीं। इसके बाद 2000 में उन्होंने बसपा छोड़कर बीजेपी ज्वाइन किया।
राजनीति में आने से पहले उनके साध्वी बनने की कहानी भी दिल को छूने वाली है। बहराइच के नानपारा में जन्मी सावित्री बाई फुले की शादी 6 साल की उम्र में ही हो गई थी, लेकिन उनकी विदाई नहीं हुई थी। एक गरीब परिवार में जन्मी सावित्री बाई फुले का संघर्ष एक प्रेरणा भी है।
आपको बता दें कि सावित्री बाई फुले के घर में जब खाना नहीं हुआ करता था, तो किसी तरह मजदूरी करके दो जून की रोटी का इंतजाम किया। घर में चावल नहीं हुआ तो कई रातें भूखे पेट भी सोईं। गरीबी ही नहीं समाज की रूढ़िवादी व्यवस्था की भी वे शिकार हुईं। 6 साल की उम्र में उनके पिता ने शादी करवा दी। हालांकि विदाई नहीं हुए। बड़े होने पर उन्होंने संन्यास ले लिया और समाज के दलित व कुचलों के लिए आंदोलन छेड़ा।
एक छोटे से मिट्टी के घर से सफ़र शुरू करने वाली साध्वी सावित्री बाई देश के सबसे बड़े पंचायत पहुंची। वह मोदी सरकार में सबसे कम उम्र की सांसद भी हैं। उन्होंने अपनी सियासी सफ़र बसपा से शुरू की थी। अब देखना दिलचस्प होगा कि वे बसपा में घर वापसी करती हैं या फिर कोई और रास्ता अख्तियार करती हैं।